शनिवार, 2 जुलाई 2011

गूगल अनुवाद अब हिंदी के अलावा अब बंगाली, गुजराती, कन्नड़, तमिल और तेलुगु में

बुधवार, २२ जून २०११

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गूगल अनुवाद अब हिंदी के अतिरिक्त 5 अन्य भारतीय भाषाओं यथा - बंगाली, गुजराती, कन्नड़, तमिल और तेलुगु में उपलब्ध है.
मैंने हिंदी के एक वाक्य को गुजराती में अनुवाद करने की कोशिश की -
हिंदी का वाक्य -
यह टेक्नोलॉज़ी आलेख मैं हिंदी में लिख रहा हूँ और इसका अनुवाद मैं गुजराती में करूंगा गूगल ट्रांसलेट से. देखता हूँ कि मशीनी अनुवाद कैसा होता है.
और इसका गुजराती अनुवाद मिला -
આ Teknolojhi લેખ હું હિન્દી અને ગુજરાતી લખવા છું હું Google ભાષાંતર સાથે અનુવાદ છે. કે મશીન અનુવાદ જોશો શું છે.

पता नहीं अनुवाद कितना सही है, मगर मुझे लगता तो है कि समझा तो जा ही सकता है कि क्या कहा गया है.
इसकी एक और ख़ूबी यह है कि साथ ही दिए गए लिंक से आप पाठ को ध्वन्यात्मक रूप से पढ़ सकते हैं. उदाहरणार्थ, ऊपर दिए गुजराती पाठ को इस तरह से पढ़ा जा सकता है (यदि आप गुजराती लिपि नहीं पढ़ पाते, परंतु बोल पाते हैं, और रोमन लिपि पढ़ पाते हैं)
Ā Teknolojhi lēkha huṁ hindī anē anuvāda huṁ Google bhāṣāntara māṁ chuṁ lēkhitamāṁ chuṁ. Kē maśīna anuvāda jōśō śuṁ chē.

भाषाई दीवारों को ढहाने की एक और उम्दा कोशिश. इस सुविधा से अब 6 भारतीय भाषाओं की सामग्री को विश्व की 63 भाषाओं में मशीनी अनुवाद किया जा सकेगा-
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हिंदी ब्लॉग का पहला-पहला विज्ञापन कि

शुक्रवार, २४ जून २०११


वस्तुतः हिंदी ब्लॉग तो नहीं, पर हिंदी ब्लॉगों से जुड़े ब्लॉग मंच का ये विज्ञापन पिछले कुछ दिनों से दिखाई देता रहा था-
ब्लॉगमंच को हार्दिक शुभकामनाएँ. हम जानना चाहेंगे कि उनका यह प्रयोग कितना सफल रहा है. यह भी जानना चाहेंगे कि उन्होंने विज्ञापन में कितने खर्च किए, कितने वसूल हुए और प्रतिफल में पाठक-प्रयोक्ता संख्या में क्या और कितनी वृद्धि हुई.

और, इधर कुछ दिन से यत्र तत्र हिंदी में गूगल एडसेंस विज्ञापन फिर से दिखाई देने लगे हैं-

है

क्या गूगल एडसेंस हिंदी जल्द ही वापस आ रहा है ?
लगता तो है.
मगर दारोमदार ब्लॉगमंच जैसे प्रयोग के सफल होने पर है. नहीं तो कोई विज्ञापनदाता यहाँ माल गंवाने क्यों आएगा भला?
--
स्क्रीन शॉट में चीजों की वर्तनी गलत दिख रही है वो नए लिनक्स तंत्र में फ़ॉन्ट रेंडरिंग की समस्या के कारण  है.

अइयो रब्बा कभी किताब न छपवाना

बुधवार, १८ मई २०११



वैसे तो अपनी किताब छपवाने का सपना मैं तब से देख रहा हूँ जब मैं राम-रहीम पॉकेट बुक पढ़ता था. बाद में गुलशन नन्दा पर ट्रांसफर हुआ तब भी अपना स्वयं का रोमांटिक नॉवेल मन में कई बार लिखा और उससे कहीं ज्यादा बार छपवाया. कुछ समय बाद रोमांस का तड़का जेम्स हेडली चेइज, अगाथा क्रिस्टी और एलिएस्टर मैक्लीन में बदला तब तो और भी न जाने कितने जासूसी नॉवेल मन ही मन में लिख मारे और छपवा भी डाले और बड़े-बड़ों से लोकार्पण भी करवा डाले. इस बीच कभी कभार जोर मारा तो कविता, तुकबंदियों और व्यंज़लों का संग्रह भी आ गया.
मगर, वास्तविक में, प्रिंट में छपवाने के मंसूबे तो मंसूबे ही रह गए थे. बहुत पहले एक स्थापित लेखक की एक और कृति बढ़िया प्रकाशन संस्थान से छपी और लोकार्पित हुई. एक समीक्षक महोदय ने प्राइवेट चर्चा में कहा – सब सेटिंग का खेल है. देखना ये किसी कोर्स में लगवाने की जुगत कर लेंगे. वो किताब कोर्स में लगी या नहीं, मगर किताब छपवाने में भी सेटिंग होती है ये पहली बार पता चला.
एक बार एक कहानीकार मित्र महोदय चहकते हुए मिल गए. उनके हाथों में उनका सद्यःप्रकाशित कहानी संग्रह था. एक प्रति मुझे भेंट करते हुए गदगद हुए जा रहे थे. मैंने बधाई दी और कहा कि अंततः आपके संग्रह को एक प्रकाशक मिल ही गया. तो थोड़े रुआंसे हुए और बोले मिल क्या गए, मजबूरी में खोजे गए. संग्रह की 100 प्रतियों को बड़ी मुश्किल से नेगोशिएट कर पूरे पंद्रह हजार में छपवाया है.
मेरे अपने संग्रह के छपने के मंसूबे पर पंद्रह हजार का चोट पड़ गया. तो, हिंदी किताबें ऐसे भी छपवाई जाती हैं? एक अति प्रकाशित लेखक मित्र से इस बाबत जाँच पड़ताल की तो उन्होंने कहा – ऐसे भी का क्या मतलब? हिंदी में ऐसे ही किताबें छपवाई जाती हैं.
अपनी हार्ड अर्न्ड मनी में से जोड़-तोड़ कर, पेट काट कर, बचत कर और पत्नी की चंद साड़ियाँ बचाकर मैंने जैसे तैसे पंद्रह हजार का जुगाड़ कर ही लिया. अब तो मेरा भी व्यंज़लों का संग्रह आने ही वाला था. मैंने प्रकाशक तय कर लिया, कवर तय कर लिया, लेआउट तय कर लिया, व्यंजलों की संख्या तय कर ली, मूल्य – दिखावे के लिए ही सही – तय कर लिया, किन मित्रों को किताबें भेंट स्वरूप देनी है और किन्हें समीक्षार्थ देनी है यह तय कर लिया. बस, संग्रह के लिए व्यंज़लों को चुनने का काम रह गया था, तो वो कौन बड़ी बात थी. दस-पंद्रह मिनट में ही ये काम हो जाता. बड़ी बात थी, संग्रह के लिए दो-शब्द और भूमिका लिखवाना. तो इसके लिए कुछ नामचीन, स्थापित मठाधीश लेखकों से वार्तालाप जारी था.
अंततः यह सब भी हो गया और मेरी किताब, मेरी अपनी किताब, मेरी अपनी लिखी हुई किताब छपने के लिए चली गई. अपना व्यंजल संग्रह छपने देने के बाद मैं इत्मीनान से ये देखने लग गया कि आजकल के समीक्षक आजकल प्रकाशित हो रही किताबों की समीक्षा किस तरह कर रहे हैं और क्या खा-पीकर कर रहे हैं.
एक हालिया प्रकाशित किताब की चर्चित समीक्षा पर निगाह गई. यूँ तो आमतौर पर समीक्षकों का काम कवर, कवर पेज पर राइटर और अंदर बड़े लेखक की भूमिका में से माल उड़ाकर धाँसू समीक्षा लिख मारना होता है, मगर यहाँ पर समीक्षक तो लगता है कि पिछले कई जन्म जन्मांतरों की दुश्मनी निकालने पर आमादा प्रतीत दीखता था. उसने हंस के अभिनव ओझा स्टाइल में किताब की फ़ुलस्टॉप, कॉमा, कोलन, डेश, इन्वर्टेड कॉमा में ही दोष नहीं निकाले बल्कि अक्षरों और वाक्यों के अर्थों के अनर्थ भी निकाल डाले और किताब को इतना कूड़ा घोषित कर दिया कि किताब छपाई को पेड़ों और काग़ज़ की बर्बादी और पर्यावरण पर दुष्प्रभाव भी बता दिया. लगता है कि समीक्षक महोदय का सदियों से विज्ञापनों की सामग्री से अटे पड़े टाइम्स, वॉग और कॉस्मोपॉलिटन जैसे अख़बारों-पत्रिकाओं का साबिका नहीं पड़ा था.
बहरहाल, मुझे अपने व्यंज़ल संग्रह की धज्जियाँ उड़ती दिखाई दीं. मैं वापस प्रकाशक के पास भागा. मैंने प्रकाशक को बताया कि मैं अपनी किताब किसी सूरत प्रकाशित नहीं करवाना चाहता. प्रकाशक बोला कि भइए, अभी कल ही तो आप खुशी खुशी आए थे, और आज क्या हो गया? मैंने प्रकाशक से कहा – भइए, आप मेरी किताब छाप दोगे तो वनों का विनाश हो जाएगा. पर्यावरण का कबाड़ा हो जाएगा. नेट पर फ़ॉन्ट साइज और पृष्ठ का रूप रंग तो प्रयोक्ता अपने हिसाब से सेट कर लेता है. मेरी किताब में यदि किसी समीक्षक को फ़ॉन्ट साइज नहीं जमी तो वो तो उसे पूरा कूड़ा ही बता देगा. मुझे नहीं छपवानी अपनी किताब. प्रकाशक अड़ गया. बोला किताब भले न छपे, पैसे एक घेला वापस नहीं मिलेगा. मैं सहर्ष तैयार हो गया. मैं सस्ते में छूट जो गया था!
भगवान ने खूब बचाया. ऐसे समीक्षकों से!! भगवान, तेरा लाख लाख शुक्रिया. सही समय सद्बुद्धि दे दी थी.

आईआईटी और आईआईएम : कौन किसे कह रहा है स्तरहीन?


iit iim without any level
किसने कैसी है उँगली उठाई स्तरहीन
देखिए कौन किसे कह रहा स्तरहीन
 
मुश्किल से राज की ये बात पता चली
शान से जीते हैं वही जो हैं स्तरहीन
 
कोई भी आता नहीं है यहाँ इस तरह
क्यों जमाने भर की भीड़ है स्तरहीन
 
जवाब की कामना किस मुँह से करोगे
सवाल ही जब दागा गया है स्तरहीन
 
रवि का तो बड़ा नाम है ईमानदारों में
दरअसल वो है जरा सा कम स्तरहीन

सत्यकथा - हेलमेट

शनिवार, २८ मई २०११


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"सर, पिछले वर्ष हमने नागपुर, मुम्बई, चेन्नई यानी लगभग सारे वेस्टर्न सदर्न बिग सिटीज कवर कर लिए थे, और अब सेंट्रल सिटीज की बारी है."
"गुड. गो अहेड"
"सर, हम एमपी के इंदौर, भोपाल, जबलपुर से शुरू करेंगे और फिर यूपी की तरफ आगे बढ़ेंगे."
"ग्रेट प्लान."
"सर, हमने इन सिटीज के डीएम, एसपी को पहले ही लाइन में ले लिया है - तो पूरी सरकारी मशीनरी हमारे साथ है. दो-एक मेनस्ट्रीम अखबार के बिग हेड्स को भी सेट कर लिया है, ये हमारे कैंपेन में अपने अखबारों में साथ देंगे."
"दैड्ट गुड. एनीथिंग एक्स्ट्रा नीड्स टू बी मैनेज्ड?"
"यस सर, कुछ लोकल पॉलिटिशियन को भी मैनेज करना पड़ सकता है, नहीं तो कैंपेन की हवा निकल जाएगी."
"ओके, दैट विल बी डन."

और इस तरह इन शहरों में बारी बारी से हफ़्ते दस दिन के लिए हेलमेट पहनो-पहनाओ अभियान हेलमेट कंपनियों के बैकग्राउण्ड प्रायोजन में चलता रहा. और जनता की हलाकान जिंदगी दस-बारह दिनों में वापस पटरी पर आती रही...

(डिस्क्लेमर और वैधानिक चेतावनी - सुरक्षा के लिहाज से दोपहिया वाहन चलाते समय हेलमेट अवश्य पहनें.)

मेरे लिए, वास्तविक सुंदरता (real beauty) का क्या अर्थ है?



शुक्रवार, ३ जून २०११


कुछ अर्थ दे रहा हूं -
real beauty
भारत में -
  • पैसा खिलाने के बाद, किसी का कोई काम सचमुच में हो जाता है.
  • घोर लालफीताशाही के बाद भी कोई प्रोजेक्ट चार के बजाय चौबीस महीनों में सही, जैसे तैसे पूरा तो हो जाता है.
  • कोई अन्ना पैदा हो जाता है.
  • जाम में फंसने के बाद भी जब कोई काम पर समय पर पहुँच जाता है.
  • गर्मी की रातों में, किसी रात, रातभर बिजली गोल नहीं होती.
  • नल में किसी दिन बढ़िया प्रेशर से पांच मिनट ज्यादा पानी आ जाता है.
  • जरूरी समय में किसी नेटवर्क पर किया गया किसी का कॉल ड्रॉप नहीं होता.
  • आपका वायर्ड/वायरलेस इंटरनेट कनेक्शन पूरी रफ़्तार और गति से सप्ताह भर बढ़िया चल जाता है.
  • कहीं जाने-आने के लिए रेल में आरक्षण आसानी से मिल जाता है.
  • एयरपोर्ट पर सिक्यूरिटी चेक पाइंट पर आपका मुस्कुराहटों से स्वागत किया जाता है.
  • किसी प्रॉडक्ट पर बिक्री उपरांत सर्विस भी शानदार मिल जाती है.
  • ट्रैफिक नहीं होने पर भी ऑटो/मिनिबस लालबत्ती जंप नहीं करते, और सिगनल हरा होने का इंतजार करते हैं.
  • किसी सरकारी ऑफिस में कोई बिल जमा करते समय बिना किसी हील-हुज्जत के, आपको पूरा चिल्लर लौटा दिया जाता है.
  • किसी सप्ताह, अखबार में सप्ताह भर  भ्रष्टाचार संबंधी खबर नहीं आती.
  • किसी माह, महीने भर पेट्रोल के दाम बढ़ने की खबर नहीं आती.
  • ... इत्यादि.

आपके अपने भी अर्थ होंगे, परिभाषाएँ होंगी - वास्तविक सुंदरता के. हमें भी बताएंगे जरा?

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इस प्रविष्टि को इंडीब्लॉगर.इन द्वारा प्रायोजित - The Yahoo Dove Real Beauty Contest के लिए विशेष तौर पर प्रकाशित किया गया. इसमें आप भी भाग ले सकते हैं. अधिक जानकारी के लिए यहाँ देखें.
आप चाहें तो इंडीब्लॉगर पर इस प्रविष्टि को प्रमोट भी कर सकते हैं.

मेरा देश यारों देखो ऐसे गिरफ़्तार हो गया...

रविवार, ५ जून २०११


बाबा रामदेव गिरफ्तार baba ramdeo arrested
घूसखोरों और भ्रष्टाचारियों में हर्षोल्लास - एक और खबर.
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व्यंज़ल

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मेरा देश यारों देखो ऐसे गिरफ़्तार हो गया
भ्रष्टाचार के हाथों ईमान गिरफ़्तार हो गया

कौन भारतीय नेता नहीं है भ्रष्टाचारियों में
इस सवाल पर हर जवाब गिरफ़्तार हो गया

कोशिशें तो की थी वैसे मैंने जमाने भर की
भूली बिसरी यादों में मगर गिरफ़्तार हो गया

वक्त की बात है ये एक है और वो एक था
वक्त के हाथों मैं यूँ ही गिरफ़्तार हो गया

ले के तो गया था रवि भी भाले बरछे तीर
यार की गली में कैसे गिरफ़्तार हो गया