शनिवार, 2 जुलाई 2011

गूगल अनुवाद अब हिंदी के अलावा अब बंगाली, गुजराती, कन्नड़, तमिल और तेलुगु में

बुधवार, २२ जून २०११

image
गूगल अनुवाद अब हिंदी के अतिरिक्त 5 अन्य भारतीय भाषाओं यथा - बंगाली, गुजराती, कन्नड़, तमिल और तेलुगु में उपलब्ध है.
मैंने हिंदी के एक वाक्य को गुजराती में अनुवाद करने की कोशिश की -
हिंदी का वाक्य -
यह टेक्नोलॉज़ी आलेख मैं हिंदी में लिख रहा हूँ और इसका अनुवाद मैं गुजराती में करूंगा गूगल ट्रांसलेट से. देखता हूँ कि मशीनी अनुवाद कैसा होता है.
और इसका गुजराती अनुवाद मिला -
આ Teknolojhi લેખ હું હિન્દી અને ગુજરાતી લખવા છું હું Google ભાષાંતર સાથે અનુવાદ છે. કે મશીન અનુવાદ જોશો શું છે.

पता नहीं अनुवाद कितना सही है, मगर मुझे लगता तो है कि समझा तो जा ही सकता है कि क्या कहा गया है.
इसकी एक और ख़ूबी यह है कि साथ ही दिए गए लिंक से आप पाठ को ध्वन्यात्मक रूप से पढ़ सकते हैं. उदाहरणार्थ, ऊपर दिए गुजराती पाठ को इस तरह से पढ़ा जा सकता है (यदि आप गुजराती लिपि नहीं पढ़ पाते, परंतु बोल पाते हैं, और रोमन लिपि पढ़ पाते हैं)
Ā Teknolojhi lēkha huṁ hindī anē anuvāda huṁ Google bhāṣāntara māṁ chuṁ lēkhitamāṁ chuṁ. Kē maśīna anuvāda jōśō śuṁ chē.

भाषाई दीवारों को ढहाने की एक और उम्दा कोशिश. इस सुविधा से अब 6 भारतीय भाषाओं की सामग्री को विश्व की 63 भाषाओं में मशीनी अनुवाद किया जा सकेगा-
image

हिंदी ब्लॉग का पहला-पहला विज्ञापन कि

शुक्रवार, २४ जून २०११


वस्तुतः हिंदी ब्लॉग तो नहीं, पर हिंदी ब्लॉगों से जुड़े ब्लॉग मंच का ये विज्ञापन पिछले कुछ दिनों से दिखाई देता रहा था-
ब्लॉगमंच को हार्दिक शुभकामनाएँ. हम जानना चाहेंगे कि उनका यह प्रयोग कितना सफल रहा है. यह भी जानना चाहेंगे कि उन्होंने विज्ञापन में कितने खर्च किए, कितने वसूल हुए और प्रतिफल में पाठक-प्रयोक्ता संख्या में क्या और कितनी वृद्धि हुई.

और, इधर कुछ दिन से यत्र तत्र हिंदी में गूगल एडसेंस विज्ञापन फिर से दिखाई देने लगे हैं-

है

क्या गूगल एडसेंस हिंदी जल्द ही वापस आ रहा है ?
लगता तो है.
मगर दारोमदार ब्लॉगमंच जैसे प्रयोग के सफल होने पर है. नहीं तो कोई विज्ञापनदाता यहाँ माल गंवाने क्यों आएगा भला?
--
स्क्रीन शॉट में चीजों की वर्तनी गलत दिख रही है वो नए लिनक्स तंत्र में फ़ॉन्ट रेंडरिंग की समस्या के कारण  है.

अइयो रब्बा कभी किताब न छपवाना

बुधवार, १८ मई २०११



वैसे तो अपनी किताब छपवाने का सपना मैं तब से देख रहा हूँ जब मैं राम-रहीम पॉकेट बुक पढ़ता था. बाद में गुलशन नन्दा पर ट्रांसफर हुआ तब भी अपना स्वयं का रोमांटिक नॉवेल मन में कई बार लिखा और उससे कहीं ज्यादा बार छपवाया. कुछ समय बाद रोमांस का तड़का जेम्स हेडली चेइज, अगाथा क्रिस्टी और एलिएस्टर मैक्लीन में बदला तब तो और भी न जाने कितने जासूसी नॉवेल मन ही मन में लिख मारे और छपवा भी डाले और बड़े-बड़ों से लोकार्पण भी करवा डाले. इस बीच कभी कभार जोर मारा तो कविता, तुकबंदियों और व्यंज़लों का संग्रह भी आ गया.
मगर, वास्तविक में, प्रिंट में छपवाने के मंसूबे तो मंसूबे ही रह गए थे. बहुत पहले एक स्थापित लेखक की एक और कृति बढ़िया प्रकाशन संस्थान से छपी और लोकार्पित हुई. एक समीक्षक महोदय ने प्राइवेट चर्चा में कहा – सब सेटिंग का खेल है. देखना ये किसी कोर्स में लगवाने की जुगत कर लेंगे. वो किताब कोर्स में लगी या नहीं, मगर किताब छपवाने में भी सेटिंग होती है ये पहली बार पता चला.
एक बार एक कहानीकार मित्र महोदय चहकते हुए मिल गए. उनके हाथों में उनका सद्यःप्रकाशित कहानी संग्रह था. एक प्रति मुझे भेंट करते हुए गदगद हुए जा रहे थे. मैंने बधाई दी और कहा कि अंततः आपके संग्रह को एक प्रकाशक मिल ही गया. तो थोड़े रुआंसे हुए और बोले मिल क्या गए, मजबूरी में खोजे गए. संग्रह की 100 प्रतियों को बड़ी मुश्किल से नेगोशिएट कर पूरे पंद्रह हजार में छपवाया है.
मेरे अपने संग्रह के छपने के मंसूबे पर पंद्रह हजार का चोट पड़ गया. तो, हिंदी किताबें ऐसे भी छपवाई जाती हैं? एक अति प्रकाशित लेखक मित्र से इस बाबत जाँच पड़ताल की तो उन्होंने कहा – ऐसे भी का क्या मतलब? हिंदी में ऐसे ही किताबें छपवाई जाती हैं.
अपनी हार्ड अर्न्ड मनी में से जोड़-तोड़ कर, पेट काट कर, बचत कर और पत्नी की चंद साड़ियाँ बचाकर मैंने जैसे तैसे पंद्रह हजार का जुगाड़ कर ही लिया. अब तो मेरा भी व्यंज़लों का संग्रह आने ही वाला था. मैंने प्रकाशक तय कर लिया, कवर तय कर लिया, लेआउट तय कर लिया, व्यंजलों की संख्या तय कर ली, मूल्य – दिखावे के लिए ही सही – तय कर लिया, किन मित्रों को किताबें भेंट स्वरूप देनी है और किन्हें समीक्षार्थ देनी है यह तय कर लिया. बस, संग्रह के लिए व्यंज़लों को चुनने का काम रह गया था, तो वो कौन बड़ी बात थी. दस-पंद्रह मिनट में ही ये काम हो जाता. बड़ी बात थी, संग्रह के लिए दो-शब्द और भूमिका लिखवाना. तो इसके लिए कुछ नामचीन, स्थापित मठाधीश लेखकों से वार्तालाप जारी था.
अंततः यह सब भी हो गया और मेरी किताब, मेरी अपनी किताब, मेरी अपनी लिखी हुई किताब छपने के लिए चली गई. अपना व्यंजल संग्रह छपने देने के बाद मैं इत्मीनान से ये देखने लग गया कि आजकल के समीक्षक आजकल प्रकाशित हो रही किताबों की समीक्षा किस तरह कर रहे हैं और क्या खा-पीकर कर रहे हैं.
एक हालिया प्रकाशित किताब की चर्चित समीक्षा पर निगाह गई. यूँ तो आमतौर पर समीक्षकों का काम कवर, कवर पेज पर राइटर और अंदर बड़े लेखक की भूमिका में से माल उड़ाकर धाँसू समीक्षा लिख मारना होता है, मगर यहाँ पर समीक्षक तो लगता है कि पिछले कई जन्म जन्मांतरों की दुश्मनी निकालने पर आमादा प्रतीत दीखता था. उसने हंस के अभिनव ओझा स्टाइल में किताब की फ़ुलस्टॉप, कॉमा, कोलन, डेश, इन्वर्टेड कॉमा में ही दोष नहीं निकाले बल्कि अक्षरों और वाक्यों के अर्थों के अनर्थ भी निकाल डाले और किताब को इतना कूड़ा घोषित कर दिया कि किताब छपाई को पेड़ों और काग़ज़ की बर्बादी और पर्यावरण पर दुष्प्रभाव भी बता दिया. लगता है कि समीक्षक महोदय का सदियों से विज्ञापनों की सामग्री से अटे पड़े टाइम्स, वॉग और कॉस्मोपॉलिटन जैसे अख़बारों-पत्रिकाओं का साबिका नहीं पड़ा था.
बहरहाल, मुझे अपने व्यंज़ल संग्रह की धज्जियाँ उड़ती दिखाई दीं. मैं वापस प्रकाशक के पास भागा. मैंने प्रकाशक को बताया कि मैं अपनी किताब किसी सूरत प्रकाशित नहीं करवाना चाहता. प्रकाशक बोला कि भइए, अभी कल ही तो आप खुशी खुशी आए थे, और आज क्या हो गया? मैंने प्रकाशक से कहा – भइए, आप मेरी किताब छाप दोगे तो वनों का विनाश हो जाएगा. पर्यावरण का कबाड़ा हो जाएगा. नेट पर फ़ॉन्ट साइज और पृष्ठ का रूप रंग तो प्रयोक्ता अपने हिसाब से सेट कर लेता है. मेरी किताब में यदि किसी समीक्षक को फ़ॉन्ट साइज नहीं जमी तो वो तो उसे पूरा कूड़ा ही बता देगा. मुझे नहीं छपवानी अपनी किताब. प्रकाशक अड़ गया. बोला किताब भले न छपे, पैसे एक घेला वापस नहीं मिलेगा. मैं सहर्ष तैयार हो गया. मैं सस्ते में छूट जो गया था!
भगवान ने खूब बचाया. ऐसे समीक्षकों से!! भगवान, तेरा लाख लाख शुक्रिया. सही समय सद्बुद्धि दे दी थी.

आईआईटी और आईआईएम : कौन किसे कह रहा है स्तरहीन?


iit iim without any level
किसने कैसी है उँगली उठाई स्तरहीन
देखिए कौन किसे कह रहा स्तरहीन
 
मुश्किल से राज की ये बात पता चली
शान से जीते हैं वही जो हैं स्तरहीन
 
कोई भी आता नहीं है यहाँ इस तरह
क्यों जमाने भर की भीड़ है स्तरहीन
 
जवाब की कामना किस मुँह से करोगे
सवाल ही जब दागा गया है स्तरहीन
 
रवि का तो बड़ा नाम है ईमानदारों में
दरअसल वो है जरा सा कम स्तरहीन

सत्यकथा - हेलमेट

शनिवार, २८ मई २०११


image
"सर, पिछले वर्ष हमने नागपुर, मुम्बई, चेन्नई यानी लगभग सारे वेस्टर्न सदर्न बिग सिटीज कवर कर लिए थे, और अब सेंट्रल सिटीज की बारी है."
"गुड. गो अहेड"
"सर, हम एमपी के इंदौर, भोपाल, जबलपुर से शुरू करेंगे और फिर यूपी की तरफ आगे बढ़ेंगे."
"ग्रेट प्लान."
"सर, हमने इन सिटीज के डीएम, एसपी को पहले ही लाइन में ले लिया है - तो पूरी सरकारी मशीनरी हमारे साथ है. दो-एक मेनस्ट्रीम अखबार के बिग हेड्स को भी सेट कर लिया है, ये हमारे कैंपेन में अपने अखबारों में साथ देंगे."
"दैड्ट गुड. एनीथिंग एक्स्ट्रा नीड्स टू बी मैनेज्ड?"
"यस सर, कुछ लोकल पॉलिटिशियन को भी मैनेज करना पड़ सकता है, नहीं तो कैंपेन की हवा निकल जाएगी."
"ओके, दैट विल बी डन."

और इस तरह इन शहरों में बारी बारी से हफ़्ते दस दिन के लिए हेलमेट पहनो-पहनाओ अभियान हेलमेट कंपनियों के बैकग्राउण्ड प्रायोजन में चलता रहा. और जनता की हलाकान जिंदगी दस-बारह दिनों में वापस पटरी पर आती रही...

(डिस्क्लेमर और वैधानिक चेतावनी - सुरक्षा के लिहाज से दोपहिया वाहन चलाते समय हेलमेट अवश्य पहनें.)

मेरे लिए, वास्तविक सुंदरता (real beauty) का क्या अर्थ है?



शुक्रवार, ३ जून २०११


कुछ अर्थ दे रहा हूं -
real beauty
भारत में -
  • पैसा खिलाने के बाद, किसी का कोई काम सचमुच में हो जाता है.
  • घोर लालफीताशाही के बाद भी कोई प्रोजेक्ट चार के बजाय चौबीस महीनों में सही, जैसे तैसे पूरा तो हो जाता है.
  • कोई अन्ना पैदा हो जाता है.
  • जाम में फंसने के बाद भी जब कोई काम पर समय पर पहुँच जाता है.
  • गर्मी की रातों में, किसी रात, रातभर बिजली गोल नहीं होती.
  • नल में किसी दिन बढ़िया प्रेशर से पांच मिनट ज्यादा पानी आ जाता है.
  • जरूरी समय में किसी नेटवर्क पर किया गया किसी का कॉल ड्रॉप नहीं होता.
  • आपका वायर्ड/वायरलेस इंटरनेट कनेक्शन पूरी रफ़्तार और गति से सप्ताह भर बढ़िया चल जाता है.
  • कहीं जाने-आने के लिए रेल में आरक्षण आसानी से मिल जाता है.
  • एयरपोर्ट पर सिक्यूरिटी चेक पाइंट पर आपका मुस्कुराहटों से स्वागत किया जाता है.
  • किसी प्रॉडक्ट पर बिक्री उपरांत सर्विस भी शानदार मिल जाती है.
  • ट्रैफिक नहीं होने पर भी ऑटो/मिनिबस लालबत्ती जंप नहीं करते, और सिगनल हरा होने का इंतजार करते हैं.
  • किसी सरकारी ऑफिस में कोई बिल जमा करते समय बिना किसी हील-हुज्जत के, आपको पूरा चिल्लर लौटा दिया जाता है.
  • किसी सप्ताह, अखबार में सप्ताह भर  भ्रष्टाचार संबंधी खबर नहीं आती.
  • किसी माह, महीने भर पेट्रोल के दाम बढ़ने की खबर नहीं आती.
  • ... इत्यादि.

आपके अपने भी अर्थ होंगे, परिभाषाएँ होंगी - वास्तविक सुंदरता के. हमें भी बताएंगे जरा?

---
image
इस प्रविष्टि को इंडीब्लॉगर.इन द्वारा प्रायोजित - The Yahoo Dove Real Beauty Contest के लिए विशेष तौर पर प्रकाशित किया गया. इसमें आप भी भाग ले सकते हैं. अधिक जानकारी के लिए यहाँ देखें.
आप चाहें तो इंडीब्लॉगर पर इस प्रविष्टि को प्रमोट भी कर सकते हैं.

मेरा देश यारों देखो ऐसे गिरफ़्तार हो गया...

रविवार, ५ जून २०११


बाबा रामदेव गिरफ्तार baba ramdeo arrested
घूसखोरों और भ्रष्टाचारियों में हर्षोल्लास - एक और खबर.
---

व्यंज़ल

--
मेरा देश यारों देखो ऐसे गिरफ़्तार हो गया
भ्रष्टाचार के हाथों ईमान गिरफ़्तार हो गया

कौन भारतीय नेता नहीं है भ्रष्टाचारियों में
इस सवाल पर हर जवाब गिरफ़्तार हो गया

कोशिशें तो की थी वैसे मैंने जमाने भर की
भूली बिसरी यादों में मगर गिरफ़्तार हो गया

वक्त की बात है ये एक है और वो एक था
वक्त के हाथों मैं यूँ ही गिरफ़्तार हो गया

ले के तो गया था रवि भी भाले बरछे तीर
यार की गली में कैसे गिरफ़्तार हो गया

यह ब्लॉग पोस्ट सिर्फ आमंत्रितों के लिए है...


robb report by invitation only (Custom)
और, यदि आप इस पोस्ट को पढ़ पा रहे हैं तो इसका सीधा सा अर्थ है कि आप भी आमंत्रितों में से एक हैं.
यह क्या? यह तो नया ट्रैंड आ गया है. सिर्फ आमंत्रितों के लिए. कुछ दिन पहले नए बन रहे एक हाउसिंग कॉम्प्लैक्स का होर्डिंग देखा. शानदार कैंपस. शानदार आर्किटेक्चर और फ़ाइवस्टार सुविधाएँ. परंतु सिर्फ आमंत्रितों के लिए. अब ऐसी जगह में रहने के लिए खरीदना तो दूर की बात, खरीदने का सपना भी मैं नहीं देख सकता क्योंकि मेरे पास आमंत्रण नहीं है.
बहुत पहले एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था का सदस्य बना था. वह संस्था भी सिर्फ और सिर्फ आमंत्रितों को ही सदस्य बनाती है - हर किसी ऐरे गैरे को सदस्य नहीं बनाती. मैं भी सगर्व आमंत्रित सदस्य बना था. परंतु आमंत्रित सदस्यों वाली संस्था में चलने वाली घोर लेटलतीफी और दीगर बातों के चलते जल्द ही मैंने अपने आपको उनके बीच 'अनामंत्रित किस्म' का पाया, और बाहर हो लिया.
robb report by invitation only 2 (Custom)
अभी एक पत्रिका - रॉब रिपोर्ट का विज्ञापन पढ़ा. पत्रिका सिर्फ आमंत्रितों को उपलब्ध होती है. अब तक मुझे इसका आमंत्रण नहीं मिला है. तो इसका सीधा सा अर्थ है कि ये विरल और दुर्लभ पत्रिका मेरे लिए नहीं है. हो सकता है आप पाठकों में से किसी को आमंत्रण मिला हो या इस पत्रिका के आमंत्रित सदस्य हों. तो कृपया हमारे ज्ञान में वृद्धि करें कि आमंत्रण आपको कैसे किस तरह मिला और आमंत्रण हासिल करने के लिए आपने कैसे व किस तरह पापड़ बेले या कौन से हथकंडे अपनाए. वैसे बात दोनों एक ही है, बस पापड़ बेलने व हथकंडे अपनाने में नजरिए - नजरिये में बाल बराबर फर्क है.
इस पत्रिका को लेकर मुझे कुछ उल्टे सीधे विचार भी आ रहे हैं. अब जब ये पत्रिका सिर्फ आमंत्रितों के लिए है तो जब आप इस पत्रिका को किसी आम-व-खास के हाथ या घर में कॉफ़ी टेबल पर देखेंगे तो आपके मन में फ्रस्टेशन उत्पन्न होगा कि देखो अगला तो आमंत्रित है और इधर देखो हमारी कोई पूछ परख ही नहीं. फिर, जो प्रकाशन कंपनी इस पत्रिका को सिर्फ और सिर्फ आमंत्रितों को बांट रही है तो क्या आमंत्रित इसे अपने बीवी-बच्चों या मित्र मंडली से भी दूर रखेगा कि आम जनता से भी दूर रखेगा? क्योंकि यदि वो इन सबको पढ़ने - देखने के लिए देने लगेगा तो फिर सिर्फ आमंत्रितों के लिए वाली बात कहाँ रह जाएगी.
और, जब एक बार पढ़ - देख लेने के बाद जब पत्रिका रद्दी हो जाएगी तो क्या रद्दी वाले को इसे नहीं बेचना है? सिर्फ आमंत्रितों के लिेए उपलब्ध पत्रिका को रद्दी में बेचकर क्या उसका लेवल डाउन करना है? प्रकाशन कंपनी ने अपने विज्ञापन में तो ये बात नहीं बताई है, मगर इस पहलू पर जरूर उसने ध्यान दिया होगा और आमंत्रितों से यह बाण्ड जरूर भरवाया होगा कि वो इस पत्रिका को रद्दी में कभी नहीं बेचेगा, अपने बीवी-बच्चों, मित्रों को नहीं देगा (क्योंकि वे आमंत्रित नहीं हैं,) और आम पब्लिक को तो दूर से भी देखने नहीं देगा.
बहुत पहले, जीमेल खाता खोलने के लिए आमंत्रण की दरकार होती थी. अभी भी यदा कदा किसी किसी नई नवेली इंटरनेट सेवा के लिए इस तरह के टोटके अपनाए जाते हैं. तो, जब जीमेल के लिए आमंत्रण जरूरी होता था, तब जिनके ईमेल पते जीमेल-धारी होते थे वे बड़े विशिष्ट ईमेल पते होते थे. परंतु शुक्र है, यह विशिष्टता जल्द ही खत्म हो गई, और जीमेल सभी के लिए उपलब्ध हो गया.
पर, ये रॉब रिपोर्ट?
क्या आप आमंत्रितों में से हैं? मैं तो नहीं हूं, और न ही आमंत्रण चाहता हूँ.. (अंगूर खट्टे हैं?!)

आपको अपने ब्लॉगिंग व्यक्तित्व का अता-पता है भी?


पका ब्लॉग आपके व्यक्तित्व का दर्पण है. परंतु क्या आपने कभी इस दर्पण में झांका भी है?
यदि नहीं, तो यही उपयुक्त समय है. और, आपकी सुविधा के लिए इंटरनेट पर तो व्यक्तित्व-दर्शना एनालाइजर प्रोग्राम “टाइपएलाइजर” ( http://www.typealyzer.com/?lang=en ) भी है, जिसमें आप अपने ब्लॉग का यूआरएल भरकर अपने व्यक्तित्व का सही सही अंदाजा लगा सकते हैं. और उस फूल कर कुप्पा हुए व्यक्तित्व (या इसके उलट) के भ्रमजाल से बाहर आ सकते हैं जो आपके पाठक या टिप्पणीकर्ता – आपके ब्लॉग पोस्टों की झूठी वाह! वाही! कर (या इसके उलट) आपको प्रदान किए हुए होते हैं.
तो, मैंने भी अपने ब्लॉग के यूआरएल को इस व्यक्तित्व दर्शना प्रोग्राम में भरा. और ये लो! एक क्लिक करते ही मेरे व्यक्तित्व की बाल की खाल हाजिर हो गई –
“The charming and trend savvy type. They are especially attuned to the big picture and anticipate trends. They often have sophisticated language skills and come across as witty and social. At the end of the day, however, they are pragmatic decision makers and have a good analytical ability.
They enjoy work that lets them use their cleverness, great communication skills and knack for new exciting ventures. They have to look out not to become quitters, since they easily get bored when the creative exciting start-up phase is over.”
और इसने मेरी पोस्टों के आधार पर मेरे मन-मस्तिष्क का ग्राफ़िकल एनॉलिसिस का चार्ट भी कुछ यूँ पेश किया –
clip_image002
फूल कर कुप्पा होने वाला व्यक्तित्व एनॉलिसिस? लगता तो ऐसा ही है.
अब आपकी बारी है. आपका व्यक्तित्व, आपके ब्लॉग यूआरएल के हिसाब से कैसा है?
अभी पता लगाएँ – यहाँ जाएँ - http://www.typealyzer.com/?lang=en
--
खास टिप – अपने ब्लॉग यूआरएल का एनालिसिस सिर्फ एक बार ही करें. दोबारा-तिबारा करने पर आपके व्यक्तित्व एनालिसिस की दुर्दशा होने की जिम्मेदारी इस प्रोग्राम की नहीं है

गीत-संगीत के दीवानों, कोक-स्टूडियो@एमटीवी देखा-सुना क्या?


coke studio mtv
भारत में टीवी पर गीत-संगीत के कार्यक्रमों के बेहद बुरे हाल हैं. या  तो आप 24x7 सड़ियल गानों के प्रोमो देखने को अभिशप्त होते हैं या फिर उतने ही सड़ियल - एसएमएस वोटिंग के लिए ऑप्टीमाइज़्ड नॉट सो इंडियन आइडल या पा रे गा मा धा (उल्टा लिख दिया तो क्या फ़र्क़ पड़ता है?) जैसे रियलिटी शो से काम चलाना पड़ता है, जिनमें गीत संगीत तो 'रीयल' बिलकुल नहीं होता.
coke studio mtv india shankar mahadevan
परंतु आपके इस अनुभव को सिरे से बदलने आ गया है एमटीवी का प्रोग्राम कोक स्टूडियो@एमटीवी.
पहले तो मैंने सोचा था कि यह प्रोग्राम भी दूसरे संगीत प्रोग्रामों की तरह सामान्य या औसत किस्म का, और अनरीयल ही  होगा. मगर मैं गलत था.
इसका पहला एपीसोड शुक्रवार 17 जून 2011 को एमटीवी पर दिखाया गया. और क्या खूब प्रोग्राम रहा यह. यदि आपने अब तक इसे नहीं देखा है तो बारंबार चल रहे इसके री-रन में अवश्य देखें. इसके अगले नए एपीसोड प्रति शुक्रवार  शाम 7 बजे दिखाए जाएंगे.
कोक-स्टूडियो@एमटीवी (coke-studio@mtv)  के विदेशी शो विदेशों में भी खासे लोकप्रिय रहे हैं. और भारत में भी यह लोकप्रियता के रेकॉर्ड तोड़ने के लिए पूरी तरह से सेट है.
इसके इस सीजन में जो बड़े नाम जुड़े हैं उनमें से कुछ हैं -
कैलाश खेर, शान, शफ़ाकत - अमानत अली, कोलोनियल कजिन्स, शंकर महादेवन, सुनिधि चौहान, वडाली ब्रदर्स, चिन्ना पोन्नु, साबरी ब्रदर्स, रिचा शर्मा इत्यादि. संयोजन लेस्ली लुइस का है.

फ़ेसबुक का इंद्रासन हिलाने आया गूगल+?

इंटरनेट खोज, ईमेल, एप्स के बाद गूगल का नया बड़ा शगूफ़ा

लेखकः sandeep | July 1st, 2011 Google Plus- Stream
इंटरनेट पर गूगल की एक नई नवेली सोशल नेटवर्किंग सेवा गूगल+ (उच्चारणः गूगल प्लस) चंद चुनिंदा आमंत्रितों के लिए प्रारंभ हो गई है। यह http://plus.google.com या http://www.google.com/+ पर उपलब्ध है।
Google Plusमाना जा रहा है कि गूगल+ को फ़ेसबुक को मात देने की नीयत से अच्छी खासी मेहनत कर प्रस्तुत किया जा रहा है। गूगल यूं भी इंटरनेट पर खोज और ईमेल से लेकर ऑफ़िस अनुप्रयोगों तक की तमाम तरह की सेवाएं और वेब अनुप्रयोग प्रदान कर उस क्षेत्र पर अपना प्रभुत्व बना बैठा है। माईक्रोसॉफ्ट बिंग के प्रवेश के बाद विगत कुछ दिनों में गूगल की बादशाहत को सबसे बड़ा खतरा फ़ेसबुक से ही रहा है, जिसका प्रयोक्ता ने एक दफा रुख किया तो फिर वहीं की हो कर रह गई, ऐसा मुकाम जो आर्कुट को मयस्सर नहीं हो सका। कई क्षेत्रों में तो इंटरनेट प्रयोग के मामले में फ़ेसबुक ने गूगल को पछाड़ कर पहले स्थान पर कब्जा भी कर लिया है। अफवाह तो ये भी है कि गूगल को उसके घर में घुसकर मात देने के लिए फ़ेसबुक ने ईमेल के पश्चात अब अपना सर्च इंजन लाने की भी योजना बना ली है। संभवतः इस समीकरण को बदलने के लिए ही गूगल ने प्लस नामक यह नया सोशल शगूफ़ा छोड़ा है। अब सवाल यही है कि क्या गूगल+ की ये कोशिश कामयाब होगी?
 

बुधवार, 20 अप्रैल 2011

मेरा समाज

 आज मेरे समाज में फिल्मों  का प्रभाव  बड़ते पैमाने पर देखा जा रहा है ,जिसका प्रभाव  मेरे ऊपर भी देखा जा  सकता है |मुछे यह फिल्म खूब भाई थी ,आज के आधुनिक युग  में नव युवक वर्ग की क्या
दशा दिशा है यह इस फिल्म में देखा जा सकता है |मीडिया का यह माध्यम पुरें  समाज को किस तरह से परिवर्तित कर रहा है यह कोई मुंबई शहर में जाकर देखे |अगर हम कहे की शामाज का आइना फ़िल्में है तो गलत नहीं होगा |आज के लिए इतना ही ,कल फिर मिलेंगे |